बैरवा समाज का इतिहास

बैरवा समाज

बैरवा जाति / समाज मूलत: राजस्थान की मूल निवासी मानी जाती है। हिन्दू धर्म में बैरवा समाज को अनुसूचित जाति वर्ग में माना जाता हैं। भारतीय संविधान की राज्यवार सूची के अनुसार राजस्थान की अनुसूचित जातियों की सूची में बैरवा समाज को एससी वर्ग में 5 वें नम्बर पर दर्शाया गया हैं। हालांकि ये राजस्थान की अनुसूचित जातियों में की सूची में तो शामिल हो गई, लेकिन कई राज्यों में बैरवा समाज के लोग अब भी एससी वर्ग में शामिल होने की लड़ाई लड़ रहे हैं। बैरवा समाज के लोगों को स्वाभिमानी , ईमानदार और मेहनतकश माना जाता हैं। वर्तमान में देशभर में बैरवा समाज के लोग हर प्रांत और कस्बे में मिल जाएंगें। लेकिन कहा जाता है कि बैरवा समाज के लोग राजस्थान से ही खाने – कमाने के लिए दूसरे प्रदेशों में गए थे और अब वहीं के होकर रह गए। वर्तमान में देशभर में बैरवा समाज की आबादी करीब 11 करोड़ बताई जाती हैं। अकेले राजस्थान में बैरवा समाज 40 से 45 लाख की संख्या में हैं । राजस्थान की विधानसभा की 200 सीटों में से करीब 70 सीटों पर बैरवा समाज के लोगों के वोट जीत – हार का निर्णय करते हैं। प्रत्येक विधानसभा में कांग्रेस, बीजेपी, सपा और दूसरे दलों में 10 से 12 विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचते हैं। अब तक का राजस्थान का कोई सा ही मंत्री मंडल ऐसा रहा होगा जिसमें दो से तीन मंत्री बैरवा समाज से लिए जाते रहे हैं। स्वर्गीय बनवाली लाल बैरवा राजस्थान के उप मुख्यमंत्री रहे हैं। अशोक बैरवा, रामगोपाल बैरवा,कैबिनेट मंत्री, रहे हैं । बाबूलाल वर्मा वर्तमान में खादय मंत्री हैं। बैरवा समाज के स्वर्गीय द्वारका प्रसाद बैरवा, रामकुमार बैरवा, बनवारी लाल बैरवा , जिया लाल बंशीवाल, श्याम लाल बंशीवाल, चर्चित सांसद और राजनेता रहे हैं। बैरवा समाज के लोग मध्यप्रदेश और दिल्ली में भी अपना राजनीतिक वर्चस्व रखते हैं। दिल्ली में प्रकाश आप पार्टी से विधायक चुने गए हैं। इंदौर की महापौर भी बैरवा समाज से ही हैं। कई विधायक, जिला प्रमुख, सांसद बैरवा समाज से हैं। वर्तमान में रामकुमार वर्मा राज्यसभा में समाज का नाम रोशन कर रहे हैं। बैरवा समाज के लोग राजनीति के साथ- साथ प्रशासनिक, पुलिस सेवा में भी अपना दबदबा रखते हैं। लेकिन आबादी के हिसाब से बैरवा समाज के लोग प्रशासनिक सेवाओं में आरक्षित वर्ग की दूसरी जातियों से काफी पिछ़ड़ गए हैं। इसका कारण शिक्षा की ओर ध्यान नहीं देना रहा हैं। हालांकि इससे पूर्व कई आईएएस और आईपीएस अधिकारी बैरवा समाज से रहे हैं। लेकिन समय के साथ आगे बढ़ने की बजाए समाज के लोगों में शिक्षा का प्रचार – प्रसार कम रहा और समय पर विवाह करने के कारण बैरवा समाज के लोगों का सरकारी नौकरियों की तरफ रुझान घट गया। जिसके चलते आज हमारे समाज के गिनते के अधिकारी – कर्मचारी बचे हैं। लेकिन ये कहा जा सकता है कि अनुसूचित जाति वर्ग में बैरवा समाज अग्रणी , पढ़ा लिखा और समझदार समाज माना जाता हैं। बैरवा समाज के लोगों पर राजनीतिक दल भी भरोसा करते हैं। राजनीतिक दलों के लोगों का कहना है कि इस समाज के लोग जो कहते है वो जरुर करते है भले ही परिणाम कुछ भी हों। इसलिए राजस्थान की सभी राजनीतिक पार्टियों में बैरवा समाज के लोगों को बराबर का भागीदार बनाया जाने लगा हैं। बीजेपी , कांग्रेस, सपा और अन्य दलों में बैरवा समाज की जागरुकता का ही परिणाम है कि उन्हें प्रदेश पदाधिकारी बनाया जाने लगा हैं। हालांकि समाज की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण जो जगह राजनीतिक दलों में बैरवा समाज को मिलनी चाहिए वो नहीं मिली हैं। लेकिन फिर भी कहीं न कहीं समाज के लोगों ने राजनीतिक दलों में एक पहचान बनाई हैं।

बैरवा समाज का इतिहास

बैरवा समाज के लोगों को राजस्थान में अनुसूचित जाति वर्ग में माना जाता हैं। राजस्थान की अनुसूचित जातियों की क्रमांक संख्या पांच में बैरवा समाज का नाम हैं। जिससे साफ है कि बैरवा समाज एससी वर्ग की प्रमुख जातियों में से एक हैं। कुछ स्थानों पर बैरवा समाज के लोगों को जयपुर, दौसा , सवाई माधोपुर में बैरवा समाज के लोगों को बोलचाल की भाषा में बलाई के नाम से भी पुकारते हैं। लेकिन बलाई समाज अलग हैं। उनका अपना अलग वजूद हैं। दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा सहित कई प्रदेशों में रह रहे बैरवा समाज के लोग आज भी आरक्षित वर्ग में नहीं होने से वहां इन्हें अनुसूचित जाति वर्ग का फायदा नहीं मिल रहा। दिल्ली में तो बैरवा समाज के लोग लंबे समय से एससी वर्ग में शामिल करने को लेकर आंदोलन चला रहे हैं। बैरवा समुदाय के लोग आज भी खेती,पशुपालन ,भवन निर्माण, मजदूरी, खेतीहर मजदूरी, ईंट भट्टों, व्यवसाय, सरकारी और गैर सरकारी विभागों में नौकरियां भी करते हैं। राजस्थान के जयपुर, दौसा, टोंक, सवाई माधोपुर, कोटा, भरतपुर, भीलवाड़ा, अजमेर, बारां, झालावाड़, करौली. धौलपुर सहित कई जिलों में अच्छी खासी संख्या में बैरवा समाज के लोग निवास करते हैं। बैरवा समाज के लोग मेहनतकश माने जाते हैं। देश में कहीं भी निवास करे मेहनत – मजदूरी करके ही अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं। कहीं पर भी बैरवा समाज के लोग अस्पृश्य कृत्य नहीं करते । इस जाति के लोगों को मरना मंजूर है लेकिन गलत कर्म या नीच कर्म करना मंजूर नहीं हैं। बताया जाता है कि जहां भी बैरवा जाति के स्वाभिमान पर आंच आने लगी तो इस जाति के लोगों ने अपने घर – जमीन जायदाद छोड़कर दूसरे शहर जाना पसंद किया लेकिन गुलामी मंजूर नहीं की। इसलिए बैरवा समाज को अनुसूचित जाति वर्ग में ही नहीं सामान्य वर्ग के लोग भी सम्मानीय और स्वाभिमानी मानते हैं। बैरवा समाज के लोग भी दूसरे एससी वर्ग की तरह ही अपने आपको इस देश का मूल निवासी और शासक वर्ग के बताते हैं। इस समाज के लोग भी अपने – आपको आर्यों से पूर्व का मूल निवासी और शासक वर्ग बताता है। क्योंकि आर्यों से पूर्व भारत में अनार्यों का ही शासन था। इसलिए न केवल बैरवा अपितू एससी वर्ग की अधिकांश जातियां ही इस बात के दावे करती हैं कि वे इस देश के शासक रहे हैं। ये दावा एससी वर्ग की तमाम जातियों के लोग , इतिहासकार करते हैं। इसलिए एससी वर्ग के लोग अपने रीति रिवाज भी क्षत्रिय वर्ग की तरह निभाते हैं। हालांकि एससी वर्ग का ये दावा कितना सत्य है ये कोई नहीं जानता है। लेकिन ये दावा सभी जातियों के लोग करते हैं। लेकिन जहां तक बैरवा समाज का सवाल है इस समाज के लोगों का कहना है अनार्यों पर जब आर्यों ने आक्रमण किया तो भारत पर अनार्यों का ही शासन था इसलिए सभी अनार्यों को मार पीट कर उनसे गुलामी स्वीकार कराई गई । जबरन उन्हें दलित बनाया गया। उनसे धीरे-धीरे कर बेगारी ली जाने लगी। और उन्हें समाज के उच्च वर्ग से का निचला तबका कहा जाने लगा। इसलिए आरक्षित वर्ग के लोग आज भी इस बात को ठोक बजाकर कहते है कि इस देश के असली शासक तो दलित आदिवासी ही हैं। हालांकि ये अलग बहस का विषय हो सकता हैं। लेकिन फिर भी बैरवा समाज का इतिहास भी शानदार रहा है और अब इस समाज के लोग वर्तमान को संवारने में लगे हैं। अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।ा

व्यवसाय रोजगार

बैरवा समाज की आर्थिक स्थिति दयनीय ही हैं। बैरवा समाज के लोगों के पास खेती की जमीन भी छोटी जोत की होने के कारण आर्थिक रुप से ये वर्ग विकास नहीं कर सका। और दूसरे समाजों की तुलना में आर्थिक रुप से पिछड़ा हुआ और कमजोर ही हैं। दूसरा सिर्फ मजदूरी ही आजिविका का साधन होने के कारण ये समाज दूसरे समाजों की तुलना में आर्थिक दृष्टि से काफी कमजोर और पिछड़ा हुआ हैं। ऐसे में सरकार को भी एससी वर्ग के उत्थान के लिए कुछ विशेष योजनाएँ बनानी चाहिए। बैरवा समाज के लोग मुख्यत: खेती, पशु पालन , और मजदूरी पर ही निर्भर थे। पूर्वांतंर में दूसरों के खेतों पर काम करने के लिए आजादी से पूर्व बेगारी ली जाती थी। इसलिए इस जाति के लोगों को अनुसूचित जाति में माना गया। वर्तमान में बैरवा समाज के लोग खेती करने के साथ- साथ भवन निर्माण , मजदूरी, खेतों पर काम करके और अन्य व्यवसाय करके अपना गुजर बसर करते हैं। आज भी इस समाज के सतर फीसदी लोग खेती और भवन निर्माण के काम पर ही निर्भर हैं। लेकिन बैरवा समाज के लोग भी पढ़ – लिखकर अब सरकारी नौकरियों में भी आने लगे हैं। निजी कल –कारखानों में भी काम कर अपना पेट पाल रहे हैं। लेकिन बैरवा समाज के पास खुद के उधोग – धंधे बहुत कम हैं। इसलिए इस जाति के सतर फीसदी लोग आज भी अपने खेतों पर रहकर खेती करते हैं , पशु पालन करते हैं या फिर शहरों में जाकर मजदूरी करते हैं। जिनमें भवन निर्माण का कार्य प्रमुख हैं। भवन निर्माण के साथ जिन परिवारों के पास खेती की जमीन नहीं है वे दूसरों की जमीन पर बंटाई से खेती करते हैं। तो कुछ बड़े खेत मालिकों के खेत ठेके में लेकर काम करते हैं। अधिकांश लोग दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। इसलिए इस वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं हैं। क्योंकि इस जाति के पास कोई स्थाई धंधा नहीं हैं। हालांकि सरकारी और गैर सरकारी सेवाओं में आने से समाज के कुछ लोगों ने अच्छी प्रगति भी की हैं। लेकिन समाज की आबाधी के हिसाब से सरकारी नौकरियों में वो मुकाम हासिल नहीं कर सकी जो दूसरी जातियों ने किया हैं। इसलिए बैरवा समाज के लोगों के लिए कहा जा सकता है कि इस समाज के लोग रोजी – रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकी आर्थिक स्थिति दूसरे समाजों से कहीं कमजोर ही हैं। इसका मुख्य कारण सबके पास खेती की पूरी जमीन नहीं होना और रोजगार के लिए दूसरों पर निर्भर रहना हैं।

शिक्षा का स्तर

बैरवा समाज में आज के समय साक्षरता तो शत – प्रतिशत हैं। लेकिन अधिकांश लोग मात्र साक्षर हैं । महिलाओं में भी पहले के मुकाबले साक्षरता का प्रतिशत बढ़ा हैं। लेकिन बैरवा समाज के लोगों में 10 वीं और 12 वीं पास करने के बाद काम धंधे के चक्कर में फंस कर युवा पढ़ाई छोड़ देते हैं। शहरों में जरुर बैरवा समाज के लोग स्नातक, स्नातकोत्तर, मेडिकल, इंजिनियरिंग,एमबीए, वकालत कर रहे हैं। पढ – लिख कर बैरवा समाज के लोग सरकारी और गैर सरकारी सेवाओं में भी जाने लगे हैं। रेस्टोरेंट, सब्जी विक्रय , किराना स्टोर , फैंशी स्टोर आदि के व्यापार में बैरवा समाज के लोगों ने पहचान बनाई हैं। लेकिन अभी भी सुधार की गुंजाईस हैं। लोगों को उम्मीद है कि आने वाले समय में बैरवा समाज के लोगों का भी आरएएस और आईएएस जैसी परीक्षाओं में भी गौरवमयी स्थान हासिल करेंगे। हालांकि अभी भी इन सेवाओं में बैरवा समाज के लोग है लेकिन उनकी गिनती ऊंगलियों पर ही इसलिए समाज में शिक्षा के प्रचार- प्रसार की आवश्यकता हैं।

विवाह

बैरवा समाज में एकल विवाह ही प्रचलन में हैं। हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत लोग विवाह करते हैं। पूर्व में लड़के या लड़की की रिश्तेदार शादियां तय करके विवाह करा देते थे। लेकिन अब समय के साथ बदलाव आया हैं। बैरवा समाज के युवक- युवतियां एक – दूसरे को देखने समझने के बाद ही विवाह के लिए हां करने पर ही परिजन उनका विवाह करते हैं। बैरवा समाज में दहेज प्रथा का भी प्रचलन हैं। लोग अपनी हैसियत के अनुसार लड़के वाले को उपहार देता हैं। नाता प्रथा का भी बैरवा समाज में प्रचलन हैं। पहली पत्नी के मरने या तलाक देने पर दुसरा विवाह करने की छूट हैं। बैरवा समाज में सामूहिक विवाह भी खूब होने लगे हैं। विवाह के लिए बैरवा समाज में स्वंय का, मां , दादी और नानी का गौत्र टालने की परम्परा हैं। हालांकि अब कई स्थानों पर नानी का गौत्र नहीं मानते । सामाजिक मंचों से भी कई बार खूद का मां और दादी का ही गौत्र शादियों में टालने की बात उठने लगी हैं। समाज में बहु पति या बहु पत्नी विवाह का प्रचलन नहीं हैं। विवाह हिन्दू रिति रिवाज से होते हैं। विवाह के दौरान भात भरने , पुत्र होने पर जामणा भरने का रिवाज हैं। लेकिन इस तरह के रिती रिवाजों का अधिकांश लोग विरोध करते हैं। कुछ दकियानूसी लोग ही जामणा, मांडाचपड़ी के रिवाज निभा रहे हैं। अधिकांश तो इन्हें मानते भी नहीं हैं।

रिती रिवाज

बैरवा समाज में रिती रिवाज के नाम पर हिन्दू धर्म की सभी रिती रिवाज मानते हैं। विवाह के समय लग्न भेजना, टीका करना , सगाई करना, चाक –भात, साकड़ी विंधायक और कपड़ों का लेन देन करने और रुपये पैसे देने की रिवाज हैं। विवाह में सात फेरे लेने और सनातन धर्म का पालन करना श्रेष्ठ माना जाता हैं। समाज में आज भी मृत्यु भोज का रिवाज हैं। हालांकि अब ये सीमित हो गया हैं। कुछ लोग इसे सिंबोलिक करने लगे हैं। टीके पर 101 रुपये देने का रिवाज बढ़ने लगा हैं। तीय की बैठक और अन्य रितियां अभी भी चल रही है। धीरेः धीरे इसमें सुधार हो रहा है। खास तौर पर युवा पीढ़ी इन सब पारंपरिक रिति- रिवाजों के खिलाफ हैं। समाज में पहले विवाह का लग्न एक माह फिर 15 दिन और उसके बाद 7 या 8 दिन का भेजा जाने लगा था। अब ये घटकर 3 या 5 दिन का हो गया। लोग अब विवाह भी एक ही दिन में सम्पन्न करने लगे हैं। इसका प्रचलन अधिक से अधिक बढ़ने लगा हैं। लेकिन समाज में दहेद प्रथा बढ़ना चिंता का विषय हैं। विवाह के दौरान पंगत और बफर दोनों ही सिस्टम हैं। ये व्यक्ति की हैसियत के अऩुसार होता हैं। शहरों में शादियां गार्डन में तो कच्ची बस्तियों और गांवों में घर के बाहर ही शादियां होती हैं। शादियों में शाकाहारी खाना ही बनाया जाता हैं। जहां शुद्दता का पूरा ख्याल रखा जाता हैं।

पूजा पाठ अंधविश्वास

बैरवा समाज के लोग हिन्दू धर्म के सभी देवी- देवताओं की पूजा पाठ करते हैं। लेकिन फिर भी बैरवा समाज के लोगों में भैरव, पितृ ,भोमिया, शहीद, सातों बहिनें, दुर्गा माता, वैष्णों माता, काली माता, बालाजी, शिवजी , गंगा मैय्या, तेजाजी महाराज, बाबा रामदेव की पूजा पाठ अधिक की जाती हैं। गांवों में लोग बीमार होने पर डाक्टर के पास जाने के बजाय आज भी पहले भैरु – भोमिया या माता के थड़े पर जाना पसंद करते हैं। हालांकि पिछले कुछ सालों में लोगों का इनसे मोह भंग होने लगा है। और अब बैरवा समाज के लोग राधा स्वामी, धन- धन सतगुरु, जय गुरुदेव, निरंकारी बाबा , मुरारी बापू, के शिष्य बन गए। बैरवा समाज की आधी से ज्यादा आबादी इन सतगुरुओं को मानने लगी हैं। इसका सकारात्मक प्रभाव भी लोगों पर पड़ा। लोग शाकाहार को अपनाने लगे है। अब लोगों पर बुद्द धर्म का प्रभाव भी पड़ने लगा हैं। कुछ लोगों ने हिन्दू धर्म की भेदभाव की नीतियों से परेशान होकर कई स्थानों पर बौद्द धर्म भी अंगीकार कर लिया हैं। कई लोग बौद्द का प्रचार – प्रसार करने में लगे हैं। लेकिन धर्म के मामले में बैरवा समाज के लोग स्थानीय आधार पर देवी- देवताओं की पूजा पाठ करते हैं। लेकिन बाबा रामदेव को सर्वाधिक लोग मानते हैं। इसके पीछे रामदेव की एससी वर्ग के लोगों के लिए किए गए काम हैं। लोगों में संत – महात्माओं का प्रभाव लगातार बढ़ रहा हैं। इन संत – महात्माओं की शिक्षा का ही असर है कि बैरवा समाज के लोग रुढियों और परम्पराओं से दूर हो रहे हैं। समाज में शिक्षा का असर बढ़ रहा हैं। युवा पीढी नशे से भी दूर हो रही हैं। शाकाहार बढ़ने से लोगों का आत्मविश्वास बढ़ा हैं। लोगों में अब ऱाधा स्वामी, धन- धन सतगुरु, निरंकारी , जय गुरुदेव जैसे संत –महात्माओं का प्रभाव बढ़ा हैं। लाखों लोग इनके अनुयायिय बन चुके हैं।

बाबा साहेब

डाक्टर भीम राव अंबेडकर का समाज के लोगों पर गहरा असर हैं। समाज के लोगों का मानना है कि बैरवा समाज को ही नहीं एससी, एसटी , पिछड़ा वर्ग , मुस्लिम, महिलाओं को सम्मान का अधिकार कहीं न कहीं संविधान से ही मिला हैं। इसलिए बैरवा समाज के लोग बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को अपना आदर्श मानते हैं। बैरवा समाज के लोग बाबा साहेब के साथ – साथ बालिनाथ जी के फालोअर हैं। बैरवा समाज के लोगों में महर्षि बालिनाथ जी के प्रति अटूट श्रद्दा हैं। क्योंकि बैरवा समाज में सामाजिक चेतना का काम बालिनाथ जी महाराज ने बाबा साहब से पूर्व ही कर दिया था। इसलिए बैरवा समाज पर बालिनाथ जी महाराज का अमिट प्रभाव हैं। बैरवा समाज की वर्तमान स्थिति के लिए बालिनाथ जी महाराज और बाबा साहेब का असर हैं। बैरवा समाज के लोगों की महात्मा ज्योबा फूले, सावित्री बाई और रामदेव जी महाराज के प्रति अटूट श्रद्दा हैं। संत रविदास जी भी बैरवा समाज के आदर्श हैं।

रहन सहन पहनावा

बैरवा समाज के लोगों का पहनावा गांवों में पुरुषों का धोती-कमीज और चूंदड़ी या सफेद साफे हैं। वहीं महिलाएं गांवों में घाघरा – लूगड़ी और साड़ी पहनती हैं। लेकिन अब गांवों में भी इस समाज के लोग धोती- कमीज, पेंट – शर्ट –टी शर्ट पहनते हैं। युवाओं में जो धनाढ़य होते हैं कानों में सोने की मुर्कियां पहनने का चलन है। महिलाओं में घाघरा – लूगड़ी के साथ साड़ी, लड़कियां सलवार सूट और अन्य कपड़े पहनती हैं। शादीशुदा महिलाएं पैरों और हाथों में चांदी के कड़े, कमर में कनकती, गले में मंगलसूत्र- पुराने समय में खुंगाली, हाथ में कड़े नेवरे, कंगन कानों में बालियां, नाक में नथ – टीका चूड़े पहनती हैं। बैरवा समाज के लोग आज भी समूह में ही रहना पसंद करते हैं। जहां चार – पांच परिवार समाज के होंगे वहीं पर रहना पसंद करते हैं। शहरों में कच्ची बस्तियों में कालोनियों में फ्लैट्स विलास में भी रहने लगे हैं। लेकिन साफ – सुथरा रहना सबकी आदत में शुमार हैं। साफ – सफाई से रहना इस समाज के लोगों का सलग हैं। रहन – सहन व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता हैं।

महिलाओं की स्थिति

बैरवा समाज भी यूं तो पितृ सतात्मक ही है। लेकिन महिलाओं की भागीदारी सभी कार्यों में अनिवार्य हैं। बैरवा समाज का कोई भी कार्य बगैर महिला की भागीदारी के पूरा नहीं होता। शादी – समारोह से लेकर रिश्तेदारी में लेन-देन सभी कार्यों में महिलाओं की राय लेना जरुरी समझा जाता हैं। यूं कह सकते हैं कि बैरवा समाज में महिलाओं की हिस्सेदारी और भागीदारी बराबर की हैं। वे घर की उतनी ही पार्टनर है जितना पुरुष हैं। इसलिए महिला शिक्षा पर जोर दिया जा रहा हैं। महिलाओं को समाज में पुरुषों की तरह ही सम्मान दिया जाता हैं। हालांकि पंच- पटेलों में उनकी राय नहीं ली जाती । लेकिन उनका हस्तक्षेप पूरा रहता है। सामाजिक घटनाक्रम और कोई पूजा – पाठ का कार्य बगैर महिला के पूरा नहीं होता। पूरे देश में लड़कियों की संख्या घट रही है लेकिन एससी वर्ग में लड़कियों की संख्या कम नहीं है। बैरवा समाज में आज भी लड़कियों का रेसो लड़कों के बराबर है। जिससे साफ है कि समाज में कन्या भ्रूण हत्या को पाप समझा जाता हैं। इसिलए उन्हें पढ़ाने में माता- पिता पूरा ध्यान देते हैं। हालांकि गांवों मे लड़कियों का विवाह जल्द करने के चक्कर में उनकी पढ़ाई पूरी नहीं होती हैं। विवाह के लिए भी महिलाओं की स्वीकृति ली जाती हैं। नाता प्रथा करते समय भी महिला की स्वीकृति को जरुरी माना जाता हैं। बैरवा समाज में महिलाओं का स्थान सम्मानीय हैं।

सुधार की आवश्यकता

यूं तो बैरवा समाज के लोगों ने वक्त के साथ अपने आपको बदलने का प्रयास किया हैं। लेकिन फिर भी विवाह में होने वाली फिजूल खर्ची को रोकने , दहेज प्रथा को रोकने का प्रयास करना चाहिए। इसके साथ ही समाज में लोगों को अंधविश्वासों से दूर रहने के लिए भी अभियान चलाना चाहिए। क्योंकि लोग भोपा – भोपियों के चक्कर में समय और पैसा दोनों बर्बाद कर रहे हैं। समाज में सभी को पढ़ाई पर ध्यान देना होगा। नुकता पृथा को पूरी तरह से बंद करना होगा। जिससे लोगों की बर्बादी रुक सके। जो लोग नशा करते है उन्हें नशे से दूर होना होगा। क्योंकि जब तक समाज में सामाजिक क्रांति नहीं आएगी ये सुधार होने वाले नहीं हैं। हालांकि अब तो सार्वजनिक स्थानों पर नशा करने वालों के खिलाफ दंड का प्रावधान होने से लोगों में नशे का चलन कम हुआ है। लेकिन अभी भी इसमें काफी गुंजाईश हैं। लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वरोजगार की और ध्यान देना होगा। जिससे लोग आत्मनिर्भर बन सके। शिक्षा को बढ़ावा देना होगा जिससे समाज की आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सके। सरकार भी इस समाज के उत्थान के लिए कुछ विशेष योजनाएं लाएं जिससे बैरवा समाज के लोग भी स्वरोजगार से जूड़ सके। आत्मनिर्भर बन सके। विकास की मुख्यधारा में आ सके।